नाडेप कम्पोस्ट बनाने की विस्तृत विधि। The detailed Method of Nadep Composting

 |कम्पोस्ट बनाने का एक न्य विकसित तरीका नाडेप विधि है जिसे महारास्ट्र के कृषक नारायण राव पांडरी पाडे (नाडेप काका) ने विकसित किया है | नाडेप विधि में कम्पोस्ट खाद जमीन की सतह का टांका बनाकर उसमें प्रक्षेत्र अवशेष तथा बराबर मात्रा में खेती की मिट्टी तथा गोबर को मिलाकर बनाया जाता है | इस विधि से 1 किलो गोबर से 30 किलो खाद चार माह में बनकर तैयार हो जाती है | नाडेप कम्पोस्ट निम्न प्रक्रिया द्वारा तैयार किया जाता है |
  1. टांका बनाना :
नाडेप कम्पोस्ट का टांका उस स्थान पर बनाया जाये जहाँ भूमि समतल हो तथा जल भराव की समस्या न हो | टांका के निर्माण हेतु आन्तरिक माप 10 फीट लम्बी, 6 फीट चौड़ी और 3 फीट गहरी रखनी चाहिए | इस प्रकार टांका का आयतन 180 घन फीट हो जाता है | टांका की दीवार 9 इंच चौड़ी रखनी चाहिए | दीवार को बनाने में विशेष बात यह है की बीच बीच में यथा स्थान छेद छोड़ें जाएँ जिससे की टांका में वायु का आवागमन बना रहे और खाद सामग्री आसानी से पक सकें | प्रत्येक दो इंटों के बाद तीसरी ईंट की जुड़ाई करते समय 7 इंच के छेद छोड़ देना चाहिए | 3 फीट ऊँची दीवार में पहले, तीसरे, छठे और नवें रददे में छेद बनाने चाहिए | दीवार के भीतरी व् बाहरी हिस्से को गाय या भैंस के गोबर से लीप दिया जाता है | फिर तैयार टांका को सूखने देना चाहिए | इस प्रकार बने टांका में नाडेप खाद बनाने के लिए मुख्य रूप से चार चीजों की आवश्यकता होती है |
पहली :- व्यर्थ पदार्थ या कचरा जैसे सूखे हरे पत्ते, छिलके, डंठल, जड़ें, बारीक़ टहनियां व् व्यर्थ खाद्य पदार्थ आदि | इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की इन पदार्थों के साथ प्लास्टिक/पोलोथिन, पत्थर व् कांच आती न शामिल हो | इस तरह के कचरे 1500 किलोग्राम मात्रा की आवश्यकता होती है |
दूसरी :- 100 किलोग्राम गाय या भैंस का गोबर या गैस संयंत्र से निकले गोबर का घोल |
तीसरी :- सुखी महीन छनी हुई तालाब की 1750 किलोग्राम मिट्टी | मिट्टी का पौलिथिन / प्लास्टिक से रहित होना आवश्यक है
चौथी :- पानी की आवश्यकता काफी हद तक मौसम पर निर्भर करती है | बरसात में जहाँ कम पानी की आवश्यकता रहेगी, वहीँ पर गर्मी में मौसम में अधिक पानी की आवश्यकता होगी | कुल मिलाकर करीब 1500 से 2000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है | गोमूत्र या अन्य पशु मूत्र मिला देने से नाडेप खाद की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होगी |
2. टांका भरना
टांका भरते समय विशेष ध्यान देना चाहिए की इसके भरने की प्रक्रिया एक ही दिन में समाप्त हो जाये | इसके लिए आवश्यक है की कम से कम दो टैंकों का निर्माण किया जाये जिससे की सभी सामग्री इकटठा होने पर एक ही दिन में टैंक भरने की प्रक्रिया पूरी हो सकें | टैंक भरने का क्रम निम्न प्रकार है |
पहली परत : व्यर्थ पदार्थों की 6 इंच की ऊंचाई तक भरते है | इस प्रकार व्यर्थ पदार्थो की 30 घन फूट में लगभग एक कुन्तल की जरूरत होती है |
दूसरी परत : गोबर के घोल की होती है इसके लिए 150 लीटर पानी में 4 किलोग्राम गोबर अथवा बायोगैस संयंत्र से प्राप्त गोबर के घोल की ढाई गुना ज्यादा मात्रा प्रयोग में लाते है | इस घोल को व्यर्थ पदार्थों द्वारा निर्मित पहली परत पर अच्छी तरह से भीगने देते है |
तीसरी परत : छनी हुई सुखी मिट्टी की प्रति परत आधा इंच मोती दूसरी परत के ऊपर बिछा कर समतल कर लेते है |
चौथी परत : इस परत को वास्तव में परत न कहकर पानी के छींटे कह सकते है | इसलिए आवश्यक है की टैंक में लगायी गयी परतें ठीक से बैठ जाएँ |
इस क्रम के क्रमश: टांका के पूरा भरने तक दोहराते है | टैक  भर जाने के बात अंत में 2.5 फूट ऊँचा झोपडी नुमा आकर में भराई करते है | इस प्रकार टैंक भर जाने के बाद इसकी गोबर व् गीली मिट्टी के मिश्रण का लेप कर देते है | प्राय: यह देखा गया है की 10 या 12 परतों में गड्ढा भर जाता है | यदि नाडेप कम्पोस्ट की गुणवत्ता में अधिक वृद्धि करनी है तो आधा इंच मिट्टी की परतों के उपर 1.5 किलोग्राम जिप्सम 1.5 किलोग्राम रक् फास्फेट + नाइट्रोजन का मिश्रण बनाकर सौ ग्राम प्रति परत बिखेरते जाते है टांका भरने के 60 से 70 दिन बाद राइजोबियम + पी.एस.बी + एजोटोबैक्टर का कल्चर बनाकर मिश्रण को छेदों के द्वारा प्रविष्ट करा देते है


टांका भरने के 15 से 20 दोनों बाद उसमे दरारें पड़ने लगती है तथा इस विघटन के कारण टैक में निचे की और बैठने लगता है | ऐसी अवस्था में उपरोक्त बताई गई विधि से दुबारा भरकर मिट्टी एवं गोकर के मिश्रण से उसी प्रकार लीप दिया जाये जैसे की प्रथम बार किया गया था | यह आवश्यक है की टांका में 60 प्रतिशत नमी का स्तर हमेशा बना रहे | इस तरह से नाडेप कम्पोस्ट 90 से 110 दिनों में बनकर प्रयोग हेतु तैयार हो जाती है | लगभग 3.0 से 3.25 तक प्रति टैंक नाडेप कम्पोस्ट बनकर प्राप्त होती है तथा इसका 3.5 तक प्रति हैक्टेयर की दर से खेती में प्रयोग करना पर्याप्त होता है | इस कम्पोस्ट के पोषक तत्वों की मात्रा नत्रजन के रूप में 0.5 से 1.5, फास्फोरस के रूप में 0.5 से 0.9 तथा पोटाश की रूप में 1.2 से 1.4 प्रतिशत तक पायी जाती है | नाडेप टांका 10 वर्ष तक अपनी पूरी क्षमता से कम्पोस्ट बनाने में सक्षम रहता है |
नाडेप कम्पोस्ट बनाने हेतु प्रति टांका निर्माण में लगभग दो से 3 हज़ार रूपये की लागत आती है | यदि 6 टांका का निर्माण कर अंतराल रूप एक एक टांका भरकर कम्पोस्ट बनाई जाये तो गरीबी रेखा से निचे जीवन यापन करने वाले व् शिक्षित बेरोजगारों को चार हज़ार रूपये प्रति माह के हिसाब से आर्थिक लाभ हो सकता है |

Comments

  1. बहुत ही सुन्दर एवं किसानों। के। लिए लाभकारी

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